हंसा सुंदर काया रो मत कर ज्यो अभिमान ।
आखिर एक दिन जाणो से सायब रे दरबार ।।
गर्भवास में भीड़ पड़ी जद हरि से करि पुकार रे ।
थाने पल भर भूलूँ नाहीं रे कोल वचन किरतार ।।
हंसा सुंदर काया रो मत कर ज्यो अभिमान ।
आखिर एक दिन जाणो से सायब रे दरबार ।।
हंसा सुंदर काया रो मत कर ज्यो अभिमान ।
आखिर एक दिन जाणो से सायब रे दरबार ।।
अरे आकर के संसार में कबहुं न भजियो राम ।
अरे तीर्थ भरथ नही किना रे किया न सुकरथ काम ।।
हंसा सुंदर काया रो मत कर ज्यो अभिमान ।
आखिर एक दिन जाणो से सायब रे दरबार ।।
अरे कुटुम्ब कबीलो देख के गर्भ कियो मन माय रे ।
अंत समय तू जावे एकलो कोई नहीं आवे काम ।।
हंसा सुंदर काया रो मत कर ज्यो अभिमान ।
आखिर एक दिन जाणो से सायब रे दरबार ।।
हंसा सुंदर काया रो मत कर ज्यो अभिमान ।
आखिर एक दिन जाणो से सायब रे दरबार ।।
राम नाम की बांधो गाँठड़ी सुरथ करो एकसार ।
कहत कबीर सुणो भई साधों हरि भज उतरो पार ।।
प्रेषक:- महेन्द्रनाथ बुटाटी
8058647403