।। दोहा ।।
मीरा जन्मी मेड़ते ,परनाई चित्तोड़।
हरी भजन प्रथा बसे ,भई सकल सीधी सिर मोर।
मोहन आवो तो सरी।
मारा रे मंदिर में ,
मीरा अकेली खड़ी।
अकेली खड़ी वो मीरा ऐकली खड़ी।
मोहन। …….
आप केवो तो सांवरिया में ,
मोर मुखट बण जावा जी।
मुखट पेरे सांवरो ,
माथा फेर मंडावा जी।
मोहन आवो तो सरी।
मारा रे मंदिर में ,
मीरा ऐकली खड़ी।
आप केवो तो सांवरिया में ,
बाँसुरिया बण जावा जी।
बंसी बजावे सांवरो ,
अरे होठा पेर में ल्यावा।
मोहन आवो तो सरी।
मारा रे मंदिर में ,
मीरा ऐकली खड़ी।
आप केवो तो सांवरिया में ,
हिवड़े हार बण जावा जी।
हार तोड़े सांवरो ,
अरे ह्रदय में रम जावा।
मोहन आवो तो सरी।
मारा रे मंदिर में ,
मीरा ऐकली खड़ी।
आप केवो तो सांवरिया में ,
पग पायल बण जावा जी।
पायल पेरे सांवरो ,
अरे चरणा में रम जावा।
मोहन आवो तो सरी।
मारा रे मंदिर में ,
मीरा ऐकली खड़ी।
आप केवो तो सांवरिया में ,
जल जमना बण जावा जी।
नावड़ लावे सांवरो ,
थारो अंग अंग रम जावा।
मोहन आवो तो सरी।
मारा रे मंदिर में ,
मीरा ऐकली खड़ी।
मीरा हर की लाड़ली ,
दो वचना री साथी ओ।
सांवरिया के आगे आगे ,
बांध घूघरा नाची।
मोहन आवो तो सरी।
मारा रे मंदिर में ,
मीरा ऐकली खड़ी।
Typed by :- Mahendra Nath