दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला।।
इस जगत सराय में मुसाफिर रहना दो दिन का ।
क्यूँ विर्था करे गुमान मूर्ख इस धन और जोबन का
नहीं है भरोसा पल का गफलत में खेला
दो दिन की जिंदगी।…………………..।।
वो कहाँ गए बलवान तीन पैर धरती तोलिनिया ।
जिनकी पड़ती थी धाक नहीं कोई सामी बोलनिया ।।
निर्भय जो दो लड़िया गया वो अकेला
दो दिन की जिंदगी…………………………….।।
ना छेड़ सक्या कोई माया गिनी गिनाई ने ।
ए गढ़ कोटा की नींव छोडग्या चिनी चिनाई ने
मिनी रे मीनाई संग चले ना अधेला
दो दिन की जिंदगी…………………………..।।
इस काया का है बाग भाग बिना खाया नही जाता ।
कहे सरमा बिना नसिब तोड़ फल खाया नहीं जाता
गाया नहीं जाता बंदे हरि गुण गायले
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला ।।