में तो पुरबियों पूरब देश रो मारी हेली ।
बोली लखे ना कोई हेली
जो मारी बोली लखे मारी हेली
भाग पुराबला होय हैली ।।
मारी मेहरम रो साधु ना मिल्यो मारी हेली।
किन संग करु में स्नेह रे ।।
साधु भया तो क्या भया मारी हेली ।
चारु दिश फैली नही वास रे
हिरदा में बीज कपट भरियो मारी हेली
करे उगन की आश रे ।।
के तो तिल कोरा भला मारी हेली ।
के लीज्यो तेल कडाय हेली
अद्बबिचली कूलर बुरी मारी हेली
दोनों दिन सूं जाय मारी हेली ।।
कड़वा पाना की कड़वी बेलड़ी मारी हेली।
फल ज्यारा कड़वा होय हेली
ज्यारी कड़वाई जद मिटे मारी हेली
बेल बिछेवा होय हैली ।।
दु लागि बेली जली मारी हेली।
होयो बीज रो नास हेली
केवे कबीर सा धर्मिदास ने मेरी
अब नहीं है उगन री आस