भई रे सब मिल रचयो संसार
भंवर उड़ जावसी ।
ओ तो बिना भक्ति रे वालो जीव
जन्म दुख पावसी ।
भई रे किन संग आयो जीव।
किन संग जावसी
ओ तो जीवत करियो नी विचार
मर्या पछतावसी।।
सब मिल रचयो संसार
भंवर उड़ जावसी ।
ओ तो बिना भक्ति रे वालो जीव
जन्म दुख पावसी ।।
सत से आयो जिव ,त्रिगुण भरमावियो।
ओ तो भूल गयो रे अपनो देश
माया में लिप्टावियो।।
सब मिल रचयो संसार
भंवर उड़ जावसी ।
ओ तो बिना भक्ति रे वालो जीव
जन्म दुख पावसी ।।
कुन थारा मा और बाप।
कुन पुर पातला
ऐ तो मतलब रा है सब लोग
कोई नही आपना ।।
सब मिल रचयो संसार
भंवर उड़ जावसी ।
ओ तो बिना भक्ति रे वालो जीव
जन्म दुख पावसी ।।
सायब कबीर सा रा मंगल, हंसा कोई गावसी।
ऐ तो हंसा गया रे सत लोक, फेर नही आवसी।।
सब मिल रचयो संसार
भंवर उड़ जावसी ।
ओ तो बिना भक्ति रे वालो जीव
जन्म दुख पावसी ।।
प्रेषक:- महेन्द्रनाथ