~ मन मेरा मत कर तन री बड़ाई ~
बडा बडा जोगेश्वर खपग्या ,
तेरी कोन चलाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
दस मस्तक जाके बीस भुजा थी,
कुंभकर्ण बल भाई।
तन रा गर्भ से लंका खो दी ,
संग चाल्यो ना कोई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
हिर्णाखुश धरती पे योद्धा,
रामजी को नाम छिपाई।
जिनके ओधर प्रहलाद जनमिया,
नख से दिया मराई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
राजा सागर के सेश पुत्र थे,
नितका कुआ खुदाई।
एक शब्द से धरती हिल गी,
बाहर निकल ना पाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
एक बाण अर्जुन को चलता ,
शेष बाण बन जाई।
काबा गोपियां लूटन लागा,
बाण चल ना पाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
तन का गर्व से वो ही नर डूबे,
भव सागर के माई।
कहत कबीर सुनो भाई साधु ,
उल्टा समाल्यो माही।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
प्रेषक :- महेन्द्रनाथ
~ मन मेरा मत कर तन री बड़ाई ~
बडा बडा जोगेश्वर खपग्या ,
तेरी कोन चलाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
दस मस्तक जाके बीस भुजा थी,
कुंभकर्ण बल भाई।
तन रा गर्भ से लंका खो दी ,
संग चाल्यो ना कोई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
हिर्णाखुश धरती पे योद्धा,
रामजी को नाम छिपाई।
जिनके ओधर प्रहलाद जनमिया,
नख से दिया मराई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
राजा सागर के सेश पुत्र थे,
नितका कुआ खुदाई।
एक शब्द से धरती हिल गी,
बाहर निकल ना पाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
एक बाण अर्जुन को चलता ,
शेष बाण बन जाई।
काबा गोपियां लूटन लागा,
बाण चल ना पाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
तन का गर्व से वो ही नर डूबे,
भव सागर के माई।
कहत कबीर सुनो भाई साधु ,
उल्टा समाल्यो माही।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
बडा बडा जोगेश्वर खपग्या ,
तेरी कोन चलाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
दस मस्तक जाके बीस भुजा थी,
कुंभकर्ण बल भाई।
तन रा गर्भ से लंका खो दी ,
संग चाल्यो ना कोई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
हिर्णाखुश धरती पे योद्धा,
रामजी को नाम छिपाई।
जिनके ओधर प्रहलाद जनमिया,
नख से दिया मराई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
राजा सागर के सेश पुत्र थे,
नितका कुआ खुदाई।
एक शब्द से धरती हिल गी,
बाहर निकल ना पाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
एक बाण अर्जुन को चलता ,
शेष बाण बन जाई।
काबा गोपियां लूटन लागा,
बाण चल ना पाई।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।
तन का गर्व से वो ही नर डूबे,
भव सागर के माई।
कहत कबीर सुनो भाई साधु ,
उल्टा समाल्यो माही।
मन मेरा मत कर तन री बड़ाई।