मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी भजन लिरिक्स


चार दिनों की चाँदनी, ओ झुटो संसार 

सुरता तू पीहर बसी भूल गयी भरतार


      मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी, नींद आलसी

      थोडा जीवणा की खातिर काई सोवे ।। टेर ।।


     खुद रा तो घर में घोर अंधेरो, परघर दिवला काई जोवे * २ 

         मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी, नींद आलसी 

        थोडा जीवना के खातीर क्यों सोवे | | टेर | |


थारा घट में  खान हीरा की, कर्म कातरी ने काई रोवे

मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी, नींद आलसी

   थोडा जी जीवणा की खातिर काई  सोवे | |तेर ||


     थारा घट माई ने तो बाग़ चन्दन को, बिज बावलिया रो क्यों बोवे


               मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी, नींद आलसी 

             थोडा जीवना के खातीर क्यों सोवे | |टेर | |

     थारा घट में तो खान हीरा की, कर्म काकरी ने क्यों रोवे

         मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी, नींद आलसी 

          थोडा जीवना के खातीर क्यों सोवे | | टेर | |


     थारा घट में तो समुद्र भरा है, कादा में कपड़ा काई धोबे 

          मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी, नींद आलसी

           थोडा जीवना के खातीर क्यों सोवे | | टेर | |


      कहत कबीर साहेब ने तो रट ले, अंत समय पडियो रोवे

           मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी, नींद आलसी

            थोडा जीवना के खातीर क्यों सोवे | | टेर | |

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