दोय रे दिनां री बन्दा सायबी ,कांई देख दिखावे रे ।
घमण्ड करे धन माल का ,साथे नहीं चाले रे ।।
महल खजाना वो छोड़ के भूप होया रे रवाना ।
क्या जानू किण देश में ज्यांरा होया रे पियाणा ।। 1
दोय रे दिनां री बन्दा सायबी ,कांई देख दिखावे रे ।
घमण्ड करे धन माल का ,साथे नहीं चाले रे ।।
ढलता रेगा ढोलिया , नित फूल बिछाता ओ ।
पोढण वाला जी चला गया, अब नहीं दिसे जाता ओ ।। 2
दोय रे दिनां री बन्दा सायबी ,कांई देख दिखावे रे ।
घमण्ड करे धन माल का ,साथे नहीं चाले रे ।।
मुछ्यां ने टेढ़ी वो राखता ,कांई आंख दिखावे वो ।
जोर जवानी तोलता ,बे नर मरता वो जावे ।। 3
दोय रे दिनां री बन्दा सायबी ,कांई देख दिखावे रे ।
घमण्ड करे धन माल का ,साथे नहीं चाले रे ।।
उण करतां को भुलगा , सुंदर तन दिनां वो ।
मान केवे थे समझ भजो , जग में थोड़ा जीणा ।। 4
दोय रे दिनां री बन्दा सायबी ,कांई देख दिखावे रे ।
घमण्ड करे धन माल का ,साथे नहीं चाले रे ।।
प्रेषक :- महेंद्र नाथ
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