पुरबले पुन पायो रे प्राणी
मानव जन्म अवतार
ऐसो नहीं है जन्म बारम्बार ।।
गर्भ में तुम कोल कियो रे ।
भूल्यो फिरे है गिवार
उत्तर कांई देवसी रे
सायब रे दरबार ।।
ऐसो नहीं है जन्म बारम्बार…
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घटत पल पल बढ़त छीन छीन ।
जाता नहीं लागे वार
तरवर से फल टूट पड़यो रे
बहुरि नहीं लागे उन डार ।।
ऐसो नहीं है जन्म बारम्बार…
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भवसागर अति उण्ड़ो भरियो ।
बह रियो मजधार
राम नाम की बैठो नया मैं
उतरो भव जल पार।।
ऐसो नहीं है जन्म बारम्बार
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काम क्रोध मद लोभ में रे ।
मोह बंदयो संसार
दासी मीरा लाल गिरधर
केवल नाम आधार ।।
ऐसो नहीं है जन्म बारम्बार..
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स्वर:- शुखदेव जी महाराज
Typed :-महेंद्र नाथ बुटाटी